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वृष राशि वालों के लिए बेहतर है दिसम्बर 2020

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ज्योतिष : शास्त्र में 12 राशियां हैं, जिसमें वृष राशि दूसरे स्थान पर है। वैसे तो वृष राशि वालों के लिए दिसम्बर 2020 उत्तम महीना है लेकिन कुछ परेशानियां भी आ सकती हैं। 10 दिसंबर के बाद से दांपत्य जीवन में टकराव की आशंका बनेगी। जीवनसाथी के साथ मतभेद बढ़ेंगे। इस कारण मानसिक तनाव भी उत्पन्न होगा। कार्य और धन संबंधी बातों पर विचार करें तो 10 दिसंबर तक जो भी बड़ी योजनाएं हैं उन्हें पूरा करने का प्रयास करें। इसके बाद काम की गति मंद हो जाएगी और बनते हुए कार्यो में बाधाएं आने लगेंगी। कारोबार और नौकरीपेशा लोगों को दिक्कत आ सकती है। इस माह अपनी सेहत को लेकर थोड़े सजग रहें। गले, श्वांस और फेफड़े संबंधी रोग परेशान कर सकते हैं। वृष राशि के अधिकतर लोग दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं। इनका स्वभाव मित्रतापूर्ण होता है, सोच रचनात्मक होता है।   वृष राशि वाले दयालु, तथ्यों के आधार पर बात करने वाले, भौतिकवादी, ख्याल रखने वाले, सख्त और धैर्य रखने वाले होते हैं। वे अपने कार्यों को लेकर प्रेक्टिकल होते हैं, जमीन से जुड़े होते हैं, कलात्मक व रचनात्मक सोच, अच्छे इंसान, दूसरों के प्रति वफादार और स्थाई सोच रखने...

शिष्य ने गुरु के लिये लाया जल

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प्रेरक कथा : एक बार की बात है कि गुरु आश्रम से एक शिष्य कहीं दूर जा रहा था कि उसे प्यास लगी। शिष्य ने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझाई, उसे अति तृप्ति मिली। शिष्य को कुएं का जल मीठा और शीतल लगा। शिष्य के मन में एक बात सूझी और उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई। गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और शिष्य से कहा. वाकई जल तो गंगाजल के समान है, शिष्य को अति प्रसन्नता हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा अपने कार्य के लिए चला गया। थोड़ी देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। शिष्य ने कहा कि गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने अनावश्यक ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की। गुरुजी बोले कि मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पीया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा, यही महत्वपूर्ण है। मुझे भी ...

अध्यात्म से बड़ा सुख नहीं

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बोधकथा : एक बार शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि गुरुजी उपासना में मन नहीं लग रहा है। बहुत कोशिश करके भी भगवान की ओर चित्त स्थिर नहीं हो रहा। गुरु थोड़ी देर बाद बोले कि सच ही कहते हो वत्स, यहां ध्यान लगेगा भी नहीं। कहीं और चलकर साधना  करेंगे। हो सकता है वहां ध्यान लग जाए। आज शाम में ही वहां चल देंगे। सूर्य अस्त होते ही दोनों एक ओर चल पड़े। गुरु के हाथ में एक कमंडल था, शिष्य के हाथ में थी एक झोली, जिसे वह बड़ी मुश्किल से संभाले हुए चल रहा था। रास्ते में एक कुआं आया। शिष्य ने शौच जाने की इच्छा व्यक्त की। दोनों रुक गए।   बहुत सावधानी से शिष्य ने झोला गुरु के पास रखा और शौच के लिए चल दिया। जाते-जाते उसने कई बार झोले पर नजर डाली, एक तीव्र प्रतिध्वनि सुनाई दी और झोले में पड़ी कोई वस्तु कुएं में जा गिरी। शिष्य दौड़ा हुआ आया और चिंतित स्वर में बोला कि भगवन झोले में सोने की ईंटें थी, वो कहां गईं, गुरु बोले कि वो कुएं में चली गईं। अब तुम्हारा ध्यान लग जाएगा। क्योंकि उसे भटकाने वाली चीज अब नहीं रही। अब कहो तो आगे बढ़ें या फिर वहीं लौट चलें, जहां से आए हैं। अब चित्त न लगने की चिंता नहीं र...