कैसे हुआ सूर्य देव का जन्म

ज्योतिष : ग्रहों के राजा सूर्य देव की जन्म कथा सभी को जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि मकर संक्रांति के साथ प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस वर्ष यानि 2020 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। कथा के अनुसार दैत्य अक्सर देवताओं पर आक्रमण किया करते थे। एक बार दैत्यों और देवताओं के बीच में भंयकर युद्ध हुआ। जो लगभग सौ वर्षों तक चलता रहा। जिसके बाद सृष्टि का आस्तित्व संकट में पड़ गया था। देवता गण पराजित होकर वन- वन भटकने लगे। उनकी यह दुर्दशा देखकर देवऋषि नारद कश्यप मुनि के आश्रम में पहुंचे और इस संकट के बार में महाऋषि कश्यप को बताया। नारद जी ने कश्यप ऋषि से कहा कि देवताओं को इस संकट से केवल बहुत सारे तेज वाला ही कोई बचा सकता है। जिसके सामने किसी भी आने की हिम्मत ने हो। जिसके पास तेज के साथ अत्याधिक बल भी हो। अगर वह देवों का प्रतिनिधित्व करें तो असुरों को हराया जा सकता है। लेकिन ऐसे तेज वाला एक महाविराट रूप में अग्न पिंड है। उसे मनुष्य के रूप में जन्म लेकर देव शक्तियों का सेनापतित्व करना चाहिए। ऐसी तेजस्वी संतान को कोई तेजस्वी स्त्री ही जन्म दे सकती है। पृथ्वी पर ऐसी स्त्री को के बारे में बहुत सोच विचार और खोजबीन के बाद नारद जी ने कश्यप ऋषि से कहा कि इसके लिए आपकी पत्नी और वेद माता आदिति ही ऐसे बालक को जन्म दे सकती हैं। इसके बाद वेद माता आदिति से सभी देवताओं ने अनुरोध किया। जिसके बाद वह इस कार्य के लिए तैयार हो गईं और उसके बाद अपने त्याग और ध्यान से एक बालक को अपने गर्भ में डाल लिया और उसके कुछ दिनों बाद उस बालक को जन्म दिया। उस बालक के शरीर से दिव्य तेज निकल रहा था।
आदिति द्वारा जन्म दिए जाने के कारण उस बालक को आदित्य नाम दिया गया। आदित्य तेजस्वी और बलशाली रूप से ही बड़े हुए। उन्हें देखकर इंद्र आदि देवता अत्याधिक प्रसन्न हुए। जिसके बाद इंद्र देव ने आदित्य को अपना सेनापति नियुक्त करके असुरों पर आक्रमण कर दिया। आदित्य के तेज के समक्ष दैत्य अधिक देर तक नहीं टिक पाए और जल्द ही वह हारने लगे। उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए पाताल लोक में जाकर छिपना पड़ा। सूर्य के तेज और प्रताप से एक बार फिर से देवताओं का स्वर्ग पर अधिकार हो गया। जिसके बाद सभी देवताओं ने आदित्य को सूर्य नाम दिया और जगत के पालनहार और ग्रह राज के रूप में स्वीकार किया। सृष्टि को दैत्यों के अत्याचारों से मुक्त कर भगवान आदित्य सूर्यदेव के रूप में ब्राह्मांड के मध्य में स्थित हो गए और वहीं से सृष्टि का कार्य संचालन करने लगे। वहीं प्रत्यक्ष रूप में भी सूर्यदेव को पूजा जाने लगा। जिनके तेज के समान किसी और देवता का तेज नहीं था। इसीलिये आज के युग यानि कलयुग में सभी को सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

15 मई से सूर्य मेष से वृषभ राशि में जाएंगे, जानें किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा