अन्ना ने जीत लिया 'युग'
देश में ऐसे बहुत से कानून हैं, जिनका दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है। अन्ना हजारे लोकपाल बिल पास करवाकर गदगद हैं, उनको ऐसा लग रहा है कि उन्होंने 'युग' जीत लिया हो। होना तो यह चाहिए कि पहले देश की गरीबी दूर हो, सभी नागरिक शिक्षित हों, उनमें राष्ट्रहित का पाठ पढ़ाकर नैतिक बनाया जाए, ऐसा होने पर भ्रष्टाचार व दुर्व्यवस्थाएं स्वत: समाप्त हो सकती हैं।
भ्रष्टचार के खिलाफ लोकपाल बिल सत्ता पक्ष और विपक्ष के समर्थन से 18 दिसम्बर को लोकसभा में पास कर दिया गया। इससे पहले 17 दिसम्बर को राज्यसभा से लोकपाल विधेयक पास होने पर लोकपाल कानून के लिए आंदोलन की अगुवाई करने वाले अन्ना हजारे ने सांसदों और सरकार का शुक्रिया अदा किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया। लोकपाल बिल पास होने की खबर सुनते ही अन्ना हजारे की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और गदगद होकर अनशन तोड़ा। लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री भी आएंगे लेकिन सुनवाई बंद कमरे में होगी। समूह ए और समूह बी वाले सरकारी कर्मचारी भी लोकपाल के दायरे में आएंगे। लेकिन फैसले से पहले कर्मचारियों की बात कहने का मौका मिलेगा। पूछताछ 60 दिन और जांच 6 महीने में पूरी होगी।
सरकारी कर्मचारी को 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। सरकारी पैसे से चलने वाली संस्था और ट्रस्ट लोकपाल के दायरे में आएंगी। हालांकि सीबीआई को सरकार के ही अधीन रखा गया है। प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया समेत 5 सदस्यों की टीम लोकपाल चुनेगी। वहीं लोकायुक्त का जिम्मा राज्यों पर छोड़ा है। विधेयक पास करवाने की कवायद आसान नहीं रही क्योंकि समाजवादी पार्टी इसका पुरजोर विरोध कर रही थी। 17 दिसम्बर को संसद शुरू होने से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और नारायण सामी को अपने घर तलब कर सरकार की रणनीति की जानकारी ली। इसके बाद मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी को विरोध जताने के लिए हंगामा करने के जगह सदन से वॉक आउट करने पर मना लिया गया और लोकपाल विधेयक शांति से पास होने का रास्ता साफ हो गया। हालांकि कुछ पार्टियों ने विधेयक के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी करवाया। लेकिन बीजेपी की रजामंदी के चलते वोटिंग भी लोकपाल विधेयक के पक्ष में ही रही। सरकार ने दिसम्बर 2011 में सदन के मत के तौर पर जिस प्रस्ताव को पास किया था, वह इस सरकारी लोकपाल से गायब है। सदन का मत था निचली नौकरशाही को लोकपाल में शामिल करने का, लोकपाल के तहत राÓयों में लोकायुक्त का गठन करने का और सिटीजन चार्टर यानी नागरिक संहिता को लोकपाल का हिस्सा बनाने को लेकर था। लेकिन मौजूदा विधेयक में ना तो सिटीजन चार्टर शामिल है और लोकायुक्त को लोकपाल से अलग कर राज्यों को उसके गठन के लिए एक साल का समय दे दिया गया है। अन्ना के अनुसार इस विधेयक से 40 से 50 फीसदी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। तो क्या शेष 50 फीसदी लोग भ्रष्टाचार करने के लिए आजाद हैं? अहम सवाल यह है कि अन्ना हजारे किस बात को लेकर गदगद हैं, किस बात के लिए उन्होंने राजनीतिक दलों का शुक्रिया अदा किया। हालांकि उन्होंने कहा कि लोकपाल विधेयक का सही अमल होना जरूरी है। तो इस लोकपाल विधेयक का अमल करेगा कौन? देश में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना और पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार चरम पर है। लोकपाल बिल से इन भ्रष्टाचारों पर लगाम लगेगा, अतिशयोक्ति ही लगता है। अन्ना हजारे ने जितनी मेहनत लोकपाल बिल को लेकर की है, क्या उन्हें गरीबी, शिक्षा व आम आदमी के लिए अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए मांग या आंदोलन नहीं करनी चाहिए थी? क्या गरीबों को रोटी, वस्त्र, शिक्षा आदि देश की प्राथमिक जरूरत नहीं है? क्या किसानों को सब्सिडी या सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए? क्या आम आदमी पार्टी बनाने में अन्ना का कम योगदान है, जो दिल्ली में पेंच फंसाए हुए है और पार्टी में राजनीतिक अज्ञानियों की भरमार है? ऐसे कई सवाल जनसमुदाय में गूंज रहे हैं, जिसका जवाब न अन्ना के पास, सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष के पास है। देश में ऐसे बहुत से कानून हैं, जिनका दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है। अन्ना हजारे लोकपाल बिल पास करवाकर गदगद हैं, उनको ऐसा लग रहा है कि उन्होंने 'युग' जीत लिया हो। होना तो यह चाहिए कि पहले देश की गरीबी दूर हो, सभी नागरिक शिक्षित हों, उनमें राष्ट्रहित का पाठ पढ़ाकर नैतिक बनाया जाए, ऐसा होने पर भ्रष्टाचार व दुर्व्यवस्थाएं स्वत: समाप्त हो सकती हैं।
अभिषेक त्रिपाठी
भ्रष्टचार के खिलाफ लोकपाल बिल सत्ता पक्ष और विपक्ष के समर्थन से 18 दिसम्बर को लोकसभा में पास कर दिया गया। इससे पहले 17 दिसम्बर को राज्यसभा से लोकपाल विधेयक पास होने पर लोकपाल कानून के लिए आंदोलन की अगुवाई करने वाले अन्ना हजारे ने सांसदों और सरकार का शुक्रिया अदा किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया। लोकपाल बिल पास होने की खबर सुनते ही अन्ना हजारे की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और गदगद होकर अनशन तोड़ा। लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री भी आएंगे लेकिन सुनवाई बंद कमरे में होगी। समूह ए और समूह बी वाले सरकारी कर्मचारी भी लोकपाल के दायरे में आएंगे। लेकिन फैसले से पहले कर्मचारियों की बात कहने का मौका मिलेगा। पूछताछ 60 दिन और जांच 6 महीने में पूरी होगी।
सरकारी कर्मचारी को 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। सरकारी पैसे से चलने वाली संस्था और ट्रस्ट लोकपाल के दायरे में आएंगी। हालांकि सीबीआई को सरकार के ही अधीन रखा गया है। प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया समेत 5 सदस्यों की टीम लोकपाल चुनेगी। वहीं लोकायुक्त का जिम्मा राज्यों पर छोड़ा है। विधेयक पास करवाने की कवायद आसान नहीं रही क्योंकि समाजवादी पार्टी इसका पुरजोर विरोध कर रही थी। 17 दिसम्बर को संसद शुरू होने से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और नारायण सामी को अपने घर तलब कर सरकार की रणनीति की जानकारी ली। इसके बाद मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी को विरोध जताने के लिए हंगामा करने के जगह सदन से वॉक आउट करने पर मना लिया गया और लोकपाल विधेयक शांति से पास होने का रास्ता साफ हो गया। हालांकि कुछ पार्टियों ने विधेयक के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी करवाया। लेकिन बीजेपी की रजामंदी के चलते वोटिंग भी लोकपाल विधेयक के पक्ष में ही रही। सरकार ने दिसम्बर 2011 में सदन के मत के तौर पर जिस प्रस्ताव को पास किया था, वह इस सरकारी लोकपाल से गायब है। सदन का मत था निचली नौकरशाही को लोकपाल में शामिल करने का, लोकपाल के तहत राÓयों में लोकायुक्त का गठन करने का और सिटीजन चार्टर यानी नागरिक संहिता को लोकपाल का हिस्सा बनाने को लेकर था। लेकिन मौजूदा विधेयक में ना तो सिटीजन चार्टर शामिल है और लोकायुक्त को लोकपाल से अलग कर राज्यों को उसके गठन के लिए एक साल का समय दे दिया गया है। अन्ना के अनुसार इस विधेयक से 40 से 50 फीसदी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। तो क्या शेष 50 फीसदी लोग भ्रष्टाचार करने के लिए आजाद हैं? अहम सवाल यह है कि अन्ना हजारे किस बात को लेकर गदगद हैं, किस बात के लिए उन्होंने राजनीतिक दलों का शुक्रिया अदा किया। हालांकि उन्होंने कहा कि लोकपाल विधेयक का सही अमल होना जरूरी है। तो इस लोकपाल विधेयक का अमल करेगा कौन? देश में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना और पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार चरम पर है। लोकपाल बिल से इन भ्रष्टाचारों पर लगाम लगेगा, अतिशयोक्ति ही लगता है। अन्ना हजारे ने जितनी मेहनत लोकपाल बिल को लेकर की है, क्या उन्हें गरीबी, शिक्षा व आम आदमी के लिए अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए मांग या आंदोलन नहीं करनी चाहिए थी? क्या गरीबों को रोटी, वस्त्र, शिक्षा आदि देश की प्राथमिक जरूरत नहीं है? क्या किसानों को सब्सिडी या सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए? क्या आम आदमी पार्टी बनाने में अन्ना का कम योगदान है, जो दिल्ली में पेंच फंसाए हुए है और पार्टी में राजनीतिक अज्ञानियों की भरमार है? ऐसे कई सवाल जनसमुदाय में गूंज रहे हैं, जिसका जवाब न अन्ना के पास, सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष के पास है। देश में ऐसे बहुत से कानून हैं, जिनका दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है। अन्ना हजारे लोकपाल बिल पास करवाकर गदगद हैं, उनको ऐसा लग रहा है कि उन्होंने 'युग' जीत लिया हो। होना तो यह चाहिए कि पहले देश की गरीबी दूर हो, सभी नागरिक शिक्षित हों, उनमें राष्ट्रहित का पाठ पढ़ाकर नैतिक बनाया जाए, ऐसा होने पर भ्रष्टाचार व दुर्व्यवस्थाएं स्वत: समाप्त हो सकती हैं।
अभिषेक त्रिपाठी
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