संदेश

चुनी हुई सरकार को अदालत का आदेश

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विचार : देश का संविधान मैंने पढ़ा नहीं है, लेकिन सुना है कि माननीय न्यायालय संसद के बनाये नियमों के अनुसार यानि कि संविधान के दायरे में रहकर अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है, अपितु दूसरी तरफ माननीय न्यायालय चुनी हुई सरकार को निर्देश दे रही है, सेना को निर्देश देने का कार्य माननीय अदालत द्वारा किया जा रहा है। सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह है कि न्यायालय उनके निजता की बात कर रही है जो देश में आग लगा रहे हैं, बंदूखें सरेआम लहरा रहे हैं, देश—प्रदेश में उपद्रव मचा रहे हैं। अब भाई अदालत का फैसला है तो स्वीकार तो करना ही होगा। वहीं दलील यह दी जाती है कि प्रदर्शन करना, धरना देना, तोड़फोड़ करना, सरकारी व सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाना नागरिक अधिकार है, अरे भाई! कर्तव्यों की भी तो कभी बात कर लिया करो, आखिर नागरिक कर्तव्य भी तो कुछ होता है। नया मामला उत्तर प्रदेश सरकार से जुड़ा है, जहां न्यायालय ने उपद्रवियों के पोस्टर हटाने के निर्देश दिये हैं और उत्तर प्रदेश सरकार इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। लेकिन शीर्ष अदालत में भी उत्तर प्रदेश सरकार को राहत नहीं मिली है, बल्कि माम...

अच्छी आदतें अपनायें, सकारात्मक सोचें

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बोधकथा : बचपन में दो दोस्त थे, जो धीरे—धीरे बड़े हुए और पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों दोस्त अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। एक दोस्त ने खूब मेहनत की और बहुत पैसा कमा लिया। जबकि दूसरा दोस्त बहुत आलसी था। वह कुछ भी काम नहीं करता था। उसका जीवन ऐसे ही गरीबी में कट रहा था। एक दिन अमीर व्यक्ति अपने बचपन के दोस्त से मिलने गया। अमीर व्यक्ति ने देखा की उसके दोस्त की हालत बहुत खराब है, उसका घर भी बहुत गंदा था। गरीब दोस्त ने बैठने के लिए जो कुर्सी दी, उस पर धूल थी। अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना घर इतना गंदा क्यों रखते हो? गरीब ने जवाब दिया कि घर साफ करने से कोई लाभ नहीं है, कुछ दिनों में ये फिर से गंदा हो जाता है। अमीर ने उसे बहुत समझाया कि घर को साफ रखना चाहिए, लेकिन वह नहीं माना। जाते समय अमीर व्यक्ति ने गरीब दोस्त को एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता उपहार में दिया। गरीब ने वह गुलदस्ता अलमारी के ऊपर रख दिया। इसके बाद जब भी कोई व्यक्ति उस गरीब के घर आता तो उसे सुंदर गुलदस्ता दिखता, वे कहते कि गुलदस्ता तो बहुत सुंदर है, लेकिन घर इतना गंदा है। बार-बार एक ही बात सुनकर गरीब ने सोचा कि ये अलमारी साफ कर...

सिर्फ स्वयं के बारे में सोचने वाला कभी महान नहीं हुआ

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बोधकथा : एक नगर में धनाड्य व्यक्ति रहता था। रोज ध्यान करने की कोशिश करता था, लेकिन वह ध्यान नहीं कर पा रहा था। एक दिन वह अपने क्षेत्र के विद्वान संत के पास पहुंचा। धनी व्यक्ति ने संत से कहा कि महाराज मेरे पास सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं है। घर-परिवार में भी सब अच्छा चल रहा है। मैं रोज ध्यान करता हूं, लेकिन मुझे इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है। लगातार मानसिक तनाव बना रहता है, कृपया कोई उपाय बताएं। संत ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। संत उसे लेकर एक कमरे की खिड़की के पास ले गए। उन्होंने धनी व्यक्ति से कहा कि बाहर क्या दिख रहा है? व्यक्ति ने कहा कि बाहर सुंदर नजारा दिख रहा है, बाहर हरियाली है। इसके बाद संत उसे एक दर्पण के सामने ले गए। व्यक्ति से कहा कि यहां तुम्हें क्या दिख रहा है। व्यक्ति ने जवाब दिया कि यहां मेरा प्रतिबिंब दिख रहा है। संत ने कहा कि इस कांच पर एक चमकीली परत है, जिससे तुम्हें कांच के दूसरी ओर दिखाई नहीं दे रहा है। ठीक इसी तरह तुम्हारे मन की दीवारों पर भी बुरे विचारों और स्वार्थ की चमकीली परत चढ़ी हुई है। जिससे तुम सिर्फ खुद को ही देख पा रहे हो, खुद ...

16 वर्षीय संत ज्ञानेश्वर के 14 सौ वर्षीय शिष्य चांगदेव महाराज की कहानी

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 कथा : युवा अवस्था में ही संत ज्ञानेश्वर ने प्रभु को प्राप्त कर लिया था। संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 ईस्वी में महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में पैठण के पास आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। 21 वर्ष की आयु में ही संसार का त्यागकर समाधि ग्रहण कर ली थी। इन 21 वर्षीय संत के 14 सौ वर्षीय संत चांगदेव महाराज शिष्य थे। संत चांगदेव की उम्र 14 सौ वर्ष थी। उन्होंने अपनी सिद्धि और योगबल से मृत्यु के 42 बार लौटा दिया था। वे एक महान सिद्ध संत थे लेकिन उन्हें मोक्ष नहीं मिला था। वे कहीं एक गुफा में ध्यान और तप किया करते थे और उनके लगभग हजारों शिष्य थे। उन्होंने अपने योगबल से यह जान लिया था कि उनकी उम्र जब 1400 वर्ष की होगी तब उन्हें गुरु मिलेंगे। चांगदेव ने संत ज्ञानेश्वर की कीर्ति और उनकी महिमा के चर्चे सुने तो उनका मन उनसे मिलने को हुआ। लेकिन चांगदेव के शिष्यों ने कहा आप एक महान संत हैं और वह एक बालक है। आप कैसे उसे मिलने जा सकते हैं? यह आपकी प्रतिष्ठा को शोभा नहीं देता। यह सुनकर चांगदेव महाराज अहंकार के वश में आ गए। फिर उन्होंने सोच की क्यों न संत ज्ञानेश्‍वर को पत्र लिख...

कैसे हुआ सूर्य देव का जन्म

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ज्योतिष : ग्रहों के राजा सूर्य देव की जन्म कथा सभी को जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि मकर संक्रांति के साथ प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस वर्ष यानि 2020 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। कथा के अनुसार दैत्य अक्सर देवताओं पर आक्रमण किया करते थे। एक बार दैत्यों और देवताओं के बीच में भंयकर युद्ध हुआ। जो लगभग सौ वर्षों तक चलता रहा। जिसके बाद सृष्टि का आस्तित्व संकट में पड़ गया था। देवता गण पराजित होकर वन- वन भटकने लगे। उनकी यह दुर्दशा देखकर देवऋषि नारद कश्यप मुनि के आश्रम में पहुंचे और इस संकट के बार में महाऋषि कश्यप को बताया। नारद जी ने कश्यप ऋषि से कहा कि देवताओं को इस संकट से केवल बहुत सारे तेज वाला ही कोई बचा सकता है। जिसके सामने किसी भी आने की हिम्मत ने हो। जिसके पास तेज के साथ अत्याधिक बल भी हो। अगर वह देवों का प्रतिनिधित्व करें तो असुरों को हराया जा सकता है। लेकिन ऐसे तेज वाला एक महाविराट रूप में अग्न पिंड है। उसे मनुष्य के रूप में जन्म लेकर देव शक्तियों का सेनापतित्व करना चाहिए। ऐसी तेजस्वी संतान को कोई तेजस्वी स्त्री ही जन्म दे सकती है। पृथ...

नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी का विरोधी नहीं तो विरोध क्यों : विहिप

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राहुल गांधी द्वारा पाक-बांग्लादेशी क्रूर समाज के प्रति हमदर्दी व असहाय हिन्दू शरणार्थियों के विरोध में सावरकर जी का अपमान सर्वथा निंदनीय  नई दिल्ली : विश्व हिन्दू परिषद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरुद्ध भड़के हिंसक प्रदर्शनों को छद्म-धर्म निरपेक्षतावादियों द्वारा निहित स्वार्थों से प्रेरित एक देश-विरोधी निंदनीय कृत्य बताया है. विहिप के अंतर्राष्ट्रीय महा-मंत्री श्री मिलिंद परांडे ने आज कहा कि विदेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने तथा पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ़गानिस्तान के धार्मिक उत्पीडन के शिकार शरणार्थियों को भारत में शरण देने से किसी भी भारतीय को कोई हानि नहीं है. इसके बावजूद कुछ छद्म-धर्म निरपेक्षतावादियों तथा निहित स्वार्थी राजनैतिक दलों द्वारा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति के अंतर्गत जनता को भड़का कर जो हिंसक प्रदर्शन कराए जा रहे हैं तथा राहुल गांधी जी द्वारा पाक-बांग्लादेशी क्रूर समुदाय के प्रति हमदर्दी किन्तु वहां के प्रताड़ित हिन्दू समुदाय का विरोध करते हुए स्वातंत्र्य वीर सावरकर का अपमान किया गया, वह सर्वथा निंदनीय व खतरनाक हैं. उन्होंने राज्य सरकारों से...

बड़े ही ज्ञानी थे अष्टावक्र

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कथा : प्राचीन समय की बात है— एक थे उद्दालक ऋषि। उद्दालक के शिष्यों में से एक थे कहोड़। कहोड़ को वेदों का ज्ञान देने के बाद ऋषि उद्दालक ने अपनी रूपवती व गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गईं। इसी दौरान कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे, एक दिन गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित हो गयेा और बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र यानि कि टेढ़ा हो जायेगा। इसके बाद एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार के बाद उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्वेतुकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्वेतुकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहां से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय मे...