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शक्तिशाली और चमत्कारी मंत्र हैं 'ॐ नम: शिवाय'

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लखनऊ : हमारा देश आध्यात्मिक देश है। आध्यात्मिक मतलब प्रकृति से शक्तियों का अवलोकन करना। सनातन धर्म में प्रकृति अनुसार ही है जीवनशैली। सनातन शास्त्रों में भी सूर्य, वायु, जल, अग्नि जीवन के जो अहम घटक हैं उन्हें हमारे पूर्वजों ने देव कहा। इसी तरह भगवान का भी वर्णन हमारे पूर्वजों ने बड़े ही बुद्धिमत्ता से की।  भ - भूमि ग - गगन वा - वायु न - नभ गौरतलब है कि देश में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व होता है, इस पर्व में भगवान शंकर का पूजन-अर्चन किया जाता है। इस वर्ष शिवरात्रि चार मार्च को है और मंदिरों में फं नमः शिवाय की गूंज सुनाई पड़ेगी। शास्त्रों में वर्णन है कि  'ॐ नम: शिवाय” वह मूल मंत्र है, जिसे कई सभ्यताओं में महामंत्र माना गया है। इस मंत्र का अभ्यास विभिन्न आयामों में किया जा सकता है। इन्हें पंचाक्षर कहा गया है, इसमें पांच मंत्र हैं। ये पंचाक्षर प्रकृति में मौजूद पांच तत्वों के प्रतीक हैं और शरीर के पांच मुख्य केंद्रों के भी प्रतीक हैं। इन पंचाक्षरों से इन पांच केंद्रों को जाग्रत किया जा सकता है। ये शारीरिक तंत्र के शुद्धीकरण के लिए बहुत शक्तिशाली माध्यम हैं। मान्यता ह...

सनातन धर्म में महिलाओं का अहम स्थान, सबसे पहले होती है आदिशक्ति की पूजा

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लखनऊ :  भारत में स्त्रियों का अहम स्थान है। स्त्रियों की महिमा व बखान से शास्त्र भरे पड़े हैं। भारतीय परम्परा में सबसे पहले आदिशक्ति की पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य, पूजन, हवन में सबसे पहला मंत्र - ऊं सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यम्बके नारायणी नमस्तुते।। इसके अलावा पवित्र गायत्री मंत्र (ऊं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वर्णेयं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्) भी आदिशक्ति को समर्पित है। सनातन धर्म में युवक-युवतियों के विवाह के समय दोनों के गुण मिलाये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जितनी ज्यादा संख्या से गुण मिलेंगे उतना ही दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा। शास्त्रों के अनुसार स्त्री व पुरुष के प्रत्येक अंग के आकार-प्रकार, त्वचा की प्रकृति और उन पर मौजूद चिन्हों के माध्यम से उसके स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र में स्त्रियों की कुल 11 प्रजातियां बताई गई हैं। ये 11 प्रजातियां उनके स्वभाव, व्यवहार और आकार-प्रकार के अनुसार वर्गीकृत की गई हैं।  - पद्मिनी स्त्री के नाक, कान तथा होंठ छोटे होते हैं। शंख के समान गर्दन और कमल के समान चेहरा...

चार मार्च को है महाशिवरात्रि : वर्षों बाद बन रहा है शुभ व दुर्लभ संयोग

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लखनऊ : इस साल 4 मार्च को महाशिवरात्रि है। हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं। महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव...

हवन और यज्ञ करते समय क्यों बोला जाता है 'स्वाहा'

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लखनऊ : सनातन धर्म में हवन और यज्ञ के समय स्वाहा बोला जाता है। स्वाहा का अर्थ है सही रीति से पहुंचाना। दूसरे शब्दों में कहें तो जरूरी पदार्थ को उसके प्रिय तक सुरक्षित पहुंचाना। श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को अर्पित करते हैं। हवन या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ्य या भोग भगवान को अर्पित करते हैं। लेकिन, कभी आपने सोचा है कि हर मंत्र के अंत में बोले जाने वाले शब्द स्वाहा का अर्थ क्या है। दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें। लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए। श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। इसके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई हैं। पौराणिक कथा : पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव...

बसंत पंचमी के दिन याद किये जाते हैं पृथ्वीराज चौहान, आंखें गंवाने के बाद मोहम्मद गोरी को उतारा था मौत के घाट

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नई दिल्ली : आज देश में बसंत पंचमी का त्योहार उत्साह से मनाया जा रहा है। हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है बसंत पंचमी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। साथ ही इसी दिन से ऋतुराज बसंत प्रारंभ होता है।वहीँ आज का दिन दिल्ली पर शासन करने वाले अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और पराक्रम के लिए भी याद किया जाता है। गौरतलब है कि पृथ्वीराज चौहान 15 वर्ष की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ़ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानियां थी, 1192 ईसवीं में बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने आंखें न होने के बावजूद अपने दुश्मन मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया था। पृथ्वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्मद गोरी का वध किया था वह वाकया भी बड़ा दिलचस्प और हैरतअंगेज है। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच तराइन के मैदान में कई बार युद्ध हुआ था। पहले के युद्धों में मोहम्मद ग़ोरी को मुंह की खानी पड़ी। पृथ्वीराज चौहान उदार हृदय वाले थे और उन्होंने युद्ध में शिकस्‍त देने के बावजूद ग़ोरी को जिंदा छोड़ दिया। लेकिन तराइन क...

बसंत पंचमी पर विशेष : मां सरस्वती जी की आरती

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इस वर्ष दस फरवरी को बसंत पंचमी पड़ रही है। इस दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा, अर्चना की जाती है और इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मन, बुद्धि तीव्र होती है। मां सरस्वती के पूजन के बाद आरती का प्रारूप निम्न है- आरती करूं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो। हंस वाहनपदमासन तेरा, शुभ वस्त्र अनुपम है तेरा। रावण का मान कैसे फेरा, वर मांगत बन गया सबेरा। यह सब कृपा तिहारी हो, उपकारी हो मातु हमारी हो। तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम अम्बुजन विकास करती हो। मंगलभवन मातु सरस्वती हो, बहुकूकन बाचाल करती हो। विद्या देने वाली वाणी धारी हो, मातु हमारी हो। तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक विष्णु भये जग के पालक। अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण, भये शम्भु संसार ही घालक बन्दों आदि। भवानी जग, सुखकारी हो, मातु हमारी हो। सद्बुद्धि विद्याबल मोही दीजै, तुम अज्ञान हटा रख लीजै। जन्मभूमि हित अर्पण कीजे, कर्मवीर भस्महिं कर दीजै। ऐसी विनय हमारी, भवभयहारी हो, मातु हमारी हो।