संदेश

सोलो संजीवनी : डिप्रेशन के लिए रामबाण

चित्र
जानकारी : अनुच्छेद 370 हटाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में 'सोलो संजीवनी' नाम एक पौधे का जिक्र किया है, तभी से यह पौधा चर्चाओं में बना हुआ है। 4,000 से 14,000 फुट की ऊंचाई पर उगने वाले इस पौधे के फलों को चमत्कारिक गुणों के कारण 'संजीवनी बूटी' माना जाता है। यह औषधि सियाचिन जैसी प्रतिकूल जगहों पर रह रहे भारतीय सेना के जवानों के लिए चमत्कार साबित हो सकती है। अमेरिका की सरकारी एजेंसी नेशनल सेंटर फॉर कॉम्प्लीमेंट्री एंड इंटिग्रेटिव हेल्थ (एनसीसीआईएच) ने सोलो पौधों पर कुछ समय पहले रिसर्च किया था। इसमें यह सामने आया था कि इसके सेवन से डिप्रेशन दूर होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मिथकीय महाकाव्य 'रामायण' में राम के भाई लक्ष्मण को जीवनदान देने वाली जड़ी-बूटी 'संजीवनी' की तलाश पूरी हो गई है। इस जड़ी-बूटी को स्थानीय लोग 'सोलो' कहते हैं। इस औषधि का नाम रहोडियोला है। इसके गुणों के बारे में लोगों को काफी समय तक जानकारी नहीं थी। स्थानीय लोग इस पौधे के पत्ती वाले हिस्सों को सब्जी के तौर पर प्रयोग करते हैं। सोलो की 3 प...

खतरनाक एक्जिमा के लिए अपनाएं घरेलू उपाय

चित्र
स्वास्थ्य : लोगों को अक्सर एक्जिमा की शिकायत रहती है, लेकिन थोड़ी सी सावधानी और घरेलू उपाय से एक्जिमा को नष्ट किया जा सकता है। एक्जिमा स्किन से संबंधित रोग है, इससे ग्रस्त व्यक्ति को त्वचा पर रैशेज आना, लगातार खुजली और जलन होने की परेशानी होती है। कई बार तो त्वचा पर गंभीर घाव भी हो जाते हैं। एलोवेरा त्वचा को ताजगी देने का सबसे बढ़िया इलाज है। एक्जिमा के कारण हो रहे त्वचा के सूखेपन को नियंत्रित करने में अद्भुत काम करता है। विटामिन ई के तेल के साथ एलोवेरा मिलाकर लगाने से खुजली को कम करने में मदद मिलेगी। यह त्वचा को पोषण और एक ही समय में सूजन को कम करने में सहायता करेगा। इसके लिए आप एलोवेरा की पत्तियों से जेल निकाल लीजिए और उसमें कैप्सूल से विटामिन ई के तेल को निकाल कर अच्छी तरह से मिला लीजिए। फिर इसे एक्जिमा प्रभावित जगह पर लगाएं और ठंडक के साथ फायदे आप स्वयं महसूस करें।  नीम और नींबौरियों के तेल में दो मुख्य एंटी-इंफ्लेमेटरी कंपाउंड होते हैं। नीम का तेल त्वचा को मॉइश्चराइज करता है, किसी भी दर्द को कम करता है, और संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसके लिए आप एक चौथाई जैतून...

चमत्कारिक फायदों के लिए खाली पेट पिएं गुड़ और जीरे का पानी

चित्र
जीवनशैली : जीरा और गुड़ स्वाद के साथ सेहत से जुड़े फायदों के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इनके अलग-अलग लाभ तो आपने जरूर सुने होंगे और जीरे के पानी के लाभ भी जानें होंगे, लेकिन आज गुड़ और जीरे के पानी को एक साथ पीने के लाभ भी जान लीजिए। शरीर में खून की कमी को पूरा करने के लिए गुड़ और जीरे का यह पानी काफी लाभप्रद है। अगर आपको खून की कमी या एनिमिया की समस्या हो, तो इसे जरूर पिएं। पेट की समस्याओं जैसे कब्ज, गैस, पेट फूलना और पेट दर्द आदि के लिए गुड़ और जीरे का यह पानी काफी फायदेमंद साबित होगा। धीरे-धीरे आपकी यह समस्याएं खत्म हो जाएंगी।  शरीर की अंदरूनी सफाई करने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में गुड़ और जीरे का पानी लाभदायक होता है। यह शरीर से अवांछित तत्वों को निकालकर आंतरिक अंगों की सफाई करता है। शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द होने पर यह पानी कारगर उपाय है। यह शारीरिक दर्द में राहत दिलाने में मददगार साबित होता है और महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द में भी राहत देता है। बुखार, सर्दी व सिरदर्द होने की स्थ‍िति में भी गुड़ और जीरे का यह पानी बेहद फायदेमंद साबित होता...

उम्र के साथ बदल जाती हैं निगाहें

चित्र
जीवनशैली : उम्र के साथ इंसान की नजर भी बदलती है। नवजात बच्चों की दृष्टि बहुत साफ नहीं होती और उन्हें दुनिया के रंग भी इतने चटकीले नहीं दिखते। करीब छह साल की उम्र तक आते आते आमतौर पर बच्चों में 20/20 दृष्टि यानि परफेक्ट विजन आ जाता है। उम्र बढ़ने के साथ आंखों पर भी असर पड़ता है। निकट दृष्टिदोष कई बार कुछ बड़े बच्चों और किशोरों में ही विकसित होता है। 40 की उम्र से ही आंखों के लेंस का लचीलापन थोड़ा कम होने लगता है। यही वह समय होता है जब बहुत से लोगों को पढ़ने के लिए चश्मा लगाना पड़ जाता है। 65 वर्ष से बड़ी उम्र के लोगों में कैटेरेक्ट या मोतियाबिंद की समस्या होना आम बात है। आजकल तो इससे काफी कम उम्र के लोगों को भी मोतियाबिंद हो रहा है जिसमें आंखों के लेंस पर बदली सी छाई दिखती है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मोतियाबिंद दुनियाभर में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है। इसे किसी दवा से ठीक नहीं किया जा सकता। मामूली ऑपरेशन से आंखों पर पड़ी झिल्ली हटवा देना ही इसका इलाज है। एल्बिनिज्म एक दुर्लभ आनुवंशिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर में मेलानिन नाम का पिगमेंट कम या बिल्कुल भी नहीं बनता...

खांसी के लिए रामबाण है चॉकलेट!

चित्र
स्वास्थ्य : चॉकलेट खांसी के लिए एक कारगर नुस्खा है। हुल विश्वविद्यालय में ह्वदय और श्वसन अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर एलिन मोरिस ने कहा, "चॉकलेट खांसी को रोक सकता है।" प्रोफेसर ने कहा कि अध्ययनों में पाया गया है कि खांसी के मरीज जब चॉकलेट आधारित दवा लेते हैं, तो दो दिन में ही काफी राहत मिलती है। इससे पहले भी दूसरे अध्ययनों में ऎसी बात कही जा चुकी है। लंदन के इंपीरियल कॉलेज के शोधार्थियों ने पाया कि कोकोआ में पाया जाने वाला एक अल्केलॉइड थियोब्रोमिन खांसी को कोडीन से बेहतर तरीके से रोक सकता है। कोडीन खांसी की दवा में पाया जाने वाला एक आम यौगिक है। आखिर खांसी में चॉकलेट से आराम क्यों मिलता है। शोधार्थियों का दावा है कि कोकोआ का गुण शांति देने वाला या स्त्रिग्धकारी होता है। इसका मतलब यह है कि यह सूजन और खरास में आराम पहुंचाता है। खास तौर से इसका कारण यह है कि यह कफ सीरप की तुलना में अधिक अच्छी तरह से चिपकता है और बेहतर लेप का काम करता है, जिससे कंठ में नस की सिरा को सुरक्षा मिलती है। यह सिरा ही हमें खांसने के लिए मजबूर करता है। 

हरी सब्जियों से खत्म होगा मोतियाबिंद का खतरा

चित्र
जीवनशैली : हरी सब्जियां प्रचुर मात्रा में लेने से प्राथमिक ओपन-एंगल ग्लूकोमा (पीओएजी) यानी मोतियाबिंद का खतरा 20 से 30 प्रतिशत कम हो जाता है। शोध के मुताबिक, बोस्टन के ब्रिघम एंड वूमेन्स हॉस्पिटल एंड हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के जे एच. कांग और उनके सहकर्मियों ने मुख्यरूप से हरे पत्ते वाली सब्जियों से निकाली गई नाइट्रेट की खुराक और पीओएजी के बीच संबंधों का मूल्यांकन किया। उन्होंने 35 वर्षो से अधिक अवधि के दौरान 41,094 पुरूषों और 63,893 महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन पर नजर डाली। इसमें पीओएजी के 1,483 मामलों की पहचान की गई।  शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक नाइट्रेट की खुराक और हरी पत्तेदार सब्जियां भोजन में लेने से पीओएजी का खतरा 20-30 प्रतिशत कम हो जाता है। पीओएजी ऑप्टिक नर्व के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण होती है और यह धीरे-धीरे बढ़ती है तथा लंबी अवधि में सामने आती है। यह शोध जामा आप्थैल्मोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

कम हुआ है डिमेंशिया का खतरा

चित्र
जीवनशैली : सामाजिक रूप से सक्रिय लोग याददाश्त और भाषा जैसे संज्ञानात्मक कौशलों में सक्रिय रहते हैं, जो उन्हें संज्ञानात्मक रूप से सक्रिय रखने में मदद करता है। हालांकि हो सकता है कि यह उनके मस्तिष्क में होने वाले बदलाव को न रोक पाए, लेकिन संज्ञानात्मक रिजर्व लोगों को बढ़ती उम्र के प्रभावों से मुकाबला करने और डिमेंशिया के लक्षणों के सक्रिय होने को कुछ समय तक टालने में मदद कर सकता है। प्रकाशित शोध में व्हाइटहाल-2 के अध्ययन के आंकड़े का उपयोग किया गया था, जिसमें 10,228 प्रतिभागियों पर नजर रखी गई थी। इन प्रतिभागियों को 1985 से 2013 के बीच छह मौकों पर उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से उनकी सक्रियता के लिए कहा गया था। शोध के लिए टीम ने 50, 60 और 70 की उम्र में सामाजिक संपर्क और डिमेंशिया की व्यापकता और क्या सामाजिक संपर्क का संज्ञानात्मक सक्रियता में गिरावट से कोई संबंध है, इसका अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि 60 की उम्र पर सामाजिक रूप से ज्यादा सक्रियता से बाद में डिमेंशिया विकसित होने का खतरा उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है।