श्रद्धा से करते हैं पशु हत्या
श्रद्धा से करते हैं पशु हत्या विश्व में पशु हत्याओं की बात की जाये तो हर साल बकरीद पर्व के मौके पर लाखों-करोड़ों बेजुबान जानवरों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। न तो सरकार, सामाजिक संगठन, एनीमल एक्ट और न ही सबसे बड़े पशु अधिकार संगठन कहने वाले पेटा के लोग इन हत्याओं का विरोध करते हैं, जबकि दीपावली और होली जैसे त्योहारों को न मनाने और संयम बरतने की अपील की जाती है, यह कितना तर्कसंगत है? एक विश्लेषण। अभी हाल ही में मुस्लिमों का बड़ा त्योहार बकरीद समाप्त हुआ है। बकरीद को ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। इसे बड़ी ईद के रूप में भी मनाया जाता है। हज की समाप्ति के अवसर पर मनाया जाने वाला यह त्यौहार कुर्बानी का त्यौहार कहलाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय में नए कपड़े पहनने और मस्जिदों में जाकर इबादत करने का रिवाज है। इबादत के बाद बकरे, गाय, भैंस, ऊंट, भेड़ आदि जानवरों की बलि दी जाती है और उसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा अपने परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बाटा जाता है और तीसरा हिस्सा गरीबों में बाट दिया जाता है। कुर्बानी के ये तीन हिस्से भी यही संदेश देते हैं...